( तर्ज- मेरो प्रभू झूला झुले घरमाँही ० )
कर सत्संग , सुधार तनूको ।
और न मारग जगमें मनूको ॥ टेक ॥
समय गया फिर मिलने न पावे ,
' दे ख्याल इसकाहि जीको ।
कितरी घडीका है जगमें निवासा ?
क्या फेर चाटे धनुको ? ॥ १ ॥
अवघड वह जमघाट पड़ेगा ,
छूट सके न किसीको ।
सद्गुरु - किरपा पलमें तरावे ,
ब्रह्म - स्वरूप कर जी को ॥ २ ॥
दुर्लभ यह मानूज - जनम है ,
भाग्य मिला आदमीको ।
कहे दास तुकड्या ,
सत् - संग साधे ,
हरजाय भव दुःख ताको ॥३ ॥
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